डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार में नीतीश सरकार चौथी बार सत्ता में आई है, लेकिन सिस्टम में कोई सुधार नहीं हुआ है। सिस्टम में आम इंसान पिस रहा है। अधिकारियों के मनमानी भरे रवैये से एक-एक काम के लिए साल भर इंतजार करना पड़ रहा है। राज्य के गोपालगंज जिले के कटेया के नितीन तिवारी दिसंबर 2019 में पैक्स चुनाव जीते। उनके पैक्स के तात्कालीन अध्यक्ष मुरलीधर पटेल ने चुनाव हारने के बाद पैक्स के खाद-बीज के लाइसेंस को सरेंडर कर दिया। अब कृषि विभाग नए पैक्स अध्यक्ष का नाम दर्ज कर लाइसेंस को जारी नहीं कर रहा है। अकेले नितीन ही नहीं बल्कि, जिले के भेड़िया, अमेया करकटहा, बैकुंठपुर, पटखौली जैसे दर्जन भर पैक्स अध्यक्षों के साथ यही संकट है।
दरअसल, इस मसले पर गोपालगंज जिला कृषि पदाधिकारी वेद नारायण सिंह ने जून महीने में राज्य कृषि निदेशक से मार्गदर्शन मांगा था। छह महीने बीत जाने के बाद भी अब तक वेद नारायण सिंह को मार्गदर्शन नहीं मिला है। इस मामले में सितंबर में जब कृषि विभाग के संयुक्त सचिव धनंजय पति त्रिपाठी से बात की गई तो उन्होंने एक सप्ताह में मार्गदर्शन निकालने की बात कही। इसके बाद जब कई बार भास्कर की टीम ने धनंजय पति त्रिपाठी से मार्गदर्शन लेटर की बात की तो उन्होंने हर बार यही कहा कि एक से दो दिन में लेटर निकल जाएगा। अब जब हमने इस बाबत फिर पिछले कुछ दिनों से धनंजय पति त्रिपाठी से बात करनी चाही तो उन्होंने फोन उठाना बंद कर दिया। फिर हमारी टीम ने कृषि निदेशक आदेश तितरमारे से बात की, तितरमारे ने कहा कि कुछ दिन पहले मार्गदर्शन भेजा जा चुका है। फिर हमने इस मसले पर जब गोपालगंज जिला कृषि अधिकारी से बात की उन्होंने कहा कि अब तक हमें मार्गदर्शन लेटर नहीं मिला है।
अब सबसे बड़ा सवाल है कि कौन झूट बोल रहा है और कौन सही। अगर अधिकारीयों का यही रवैया रहेगा तो आम इंसान ऐसे ही परेशान होगा और पांच साल बीत जाने के बाद भी पैक्स के लाइसेंस पर नाम नहीं चढ़ेगा। भास्कर इस मामले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार कृषि मंत्री से संपर्क कर उन्हें इस पूरे मसले से अवगत कराएगा।
जानिए क्या है पूरा मामला
दरअसल, पैक्स समिति खाद के लिए पैक्स अध्यक्ष को लाइसेंस मुहैया कराती है, ताकि अध्यक्ष सस्ते दाम पर सरकारी खाद लाकर किसानों को उपलब्ध करा सकें। लेकिन वर्तमान पैक्स अध्यक्षों का नाम अब तक लाइसेंस पर नहीं चढ़ा है, अभी तक हारे हुए प्रत्याशी का नाम ही समिति की लाइसेंस पर है, जिससे पैक्स अध्यक्ष किसानों को सस्ते दाम पर खाद मुहैया नहीं करा पा रहे हैं। इस मामले में जून महीने में जब जिला कृषि पदाधिकारी वेद नारायण सिंह से पैक्स अध्यक्षों ने बात की, तो कृषि अधिकारी का जवाब था कि अभी ये मामला मेरे पास नया है, मैं इसमें अपने वरीय अधिकारी से बात कर कुछ बता पाऊंगा।
इस मसले पर भास्कर टीम ने जून में पूर्व जॉइंट डायरेक्टर कॉर्प एंड फार्म डॉ। ब्रजेश कुमार कुमार से बात की, उन्होंने कहा कि लाइसेंस पर प्रोपराइटर का नाम बदला जाता है। चूंकि यह लाइसेंस किसी का निजी न होकर पैक्स समिति का लाइसेंस है इसलिए जीते हुए प्रत्याशी का नाम उस पर चढ़ जाएगा। इसमें कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। ब्रजेश कुमार ने जिला कृषि पदाधिकारी की ओर से नए लाइसेंस बनवाने की बातों को गलत करार दिया और कहा ऐसा कुछ भी नहीं है, यह पुराना नियम है, इसमें कुछ नया नहीं है। ये बात जिला कृषि पदाधिकारी, वेद नारायण सिंह को पता है। मुझे समझ नहीं आ रहा वे क्यों नहीं लाइसेंस पर जीते हुए प्रॉपराइटर का नाम बदल रहे हैं।
इसके बाद जब दोबारा जिला कृषि पदाधिकारी के सामने ये बात रखी गई तो उन्होंने जॉइंट डायरेक्टर ब्रजेश कुमार से बात कर ही इस मामले पर कुछ भी बताने की हामी भरी। जिला कृषि पदाधिकारी वेद नारायण सिंह ने बाद में बताया कि जॉइंट डायरेक्टर ने उन्हें कुछ भी साफ-साफ नहीं बताया है। दोबारा फिर जब हमने जॉइंट डायरेक्टर से बात की तो उनका कहना था कि इसमें कुछ नया नहीं है, जो नियम है वही चल रहा है। लाइसेंस पर नाम चढ़ता है, नया लाइसेंस नहीं बनता है।
सीनियर अधिकारी के कहने के बावजूद जिले के नए जीते हुए पैक्स अध्यक्षों को लाइसेंस पर नाम बदलवाने को लेकर जिला कृषि पदाधिकारी के दफ्तर के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। मौजूदा समय में कृषि सीजन होने से किसान पैक्स अध्यक्षों से सस्ता खाद उपलब्ध कराने का आग्रह कर रहे हैं। लेकिन अधिकारीयों का जो रवैया दिख रहा है उससे तो यही लगता है कि इस सीजन में भी किसानों को सस्ते दर पर मिलने वाले खाद से वंचित रहना पड़ेगा। जबकि पैक्स चुनाव के नतीजे दिसंबर 2019 के मध्य में ही जारी कर दिए गए थे। एक साल से ज्यादा समय बीतने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
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